इस अत्यंत सीमित ज्ञान एवं आधुनिक वैज्ञानिक संसाधनों की सीमित खोज से ही उपर्युक्त “ वैदिक ” सूक्त “ “ चन्द्रमा मनसो जातश्च-” की सिद्धि हो जाती है।
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सीमित खोज से पता लगा है कि अच्छी तरह धोने के बाद भी दाँतों के ब्रुश साफ़ नज़र आने के बावजूद संभावित तौर पर सूक्षम पैथोजैनिक जीवाणुओं के साथ भरे हो सकता है हैं।